आख़िर क्यों ?
जो बचाए सबकी जान, कैसे बचेगी उसकी जान?
छत्तीस घंटे काम किया, क्या गुनाह था कि आराम किया?
तन पर नहीं थे कपड़े छोटे, सफ़ेद कोट से ढकी हुई थी,
कैसे नहीं आत्मा झिझकी, जब निर्वस्त्र वह पड़ी हुई थी
अब उम्र दोष की बात न करना, चाहे हो 2 महीने की बच्ची
या हो 80 साल की नारी, घर में, काम पर, है कौन जगह,
जहाँ नहीं है अस्मत के शिकारी! कहो कहाँ नहीं अस्मत के शिकारी?
मौत दर्दनाक उसने है पाई, सियासत ने कीमत है लगाई,
वह बेटी तो लौटेगी कभी ना,क्या बिना न्याय होगी भरपाई ?
वर्षों की आज़ादी का सबसे बड़ा मलाल यही
बेटी की आज़ादी पर सबसे बड़ा सवाल यही
जन्म सुरक्षित होने पर भी, पल पल ऐसा लगता है
रोज़ नई मौत मरने ही, क्या हम दुनिया में आए हैं?
द्वारा-
साक्षी दुआ (XI)
सर्वोदय कन्या विद्यालय मोती नगर
________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है मेरे विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।
मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हीं कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
बहुत बढिया👏
Your words shed light on an important issue, and I admire your courage in addressing such a sensitive topic through your poetry❤️
Well done Kiddo🙌🏻
Now she will definitely get justice…🥺👍
कविता लेखन की पहली कसौटी है ‘महसूस करना’ जो आप कर सकी हो ….
यूँ ही लिखती रहो साक्षी बेटा और बुलंदियों तक परचम लहराओ! मेरा स्नेह और आशीष!!