सृजन - Our Sahityashala

कल रात का चाँद…

रात को एक तारा चाँद के सबसे क़रीब था,
कल रात का चाँद भी कितना ख़ुशनसीब था।
उस चन्द्रमा की चाँदनी का कोई मोल नहीं,
मगर कल तो सितारा भी जगमगा रहा था।

दोनों ने एक-दूसरे को बहुत देर तक देखा,
जी भर के देखा, आँख भर के देखा।
उन्हें शरमाते हुए कल मैंने देखा,
कुछ बातें भी हुई उनकी,
बस हाथ थामने की ख़्वाहिश रह गई अधूरी।

जो हुआ उजाला सवेरे को,
आँखों में अश्क सजाकर
कहना पड़ा अलविदा दोनों को।
ये कहके कि फिर मिलेंगे,
केवल तुम और मैं,
महफ़िल में नहीं, तन्हाई में मिलेंगे।

चुपके से अँधियारे में मिलेंगे,
करेंगे आँखें चार फिर से,
रखेंगे हाथ थामने की ख्वाहिश फिर से।
आँखों में अश्क लेकर,
कहना पड़ा अलविदा दोनों को।
ये कहके कि फिर मिलेंगे,
केवल तुम और मैं।

द्वारा-

शिफाली (XII)

सर्वोदय कन्या विद्यालय मोती नगर

________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है मेरे विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हीं कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

2 thoughts on “कल रात का चाँद…

  1. क्या ख़ूब लिखा है एक चांदनी ने उस चाँद की ख़ूबसूरती पर, चाँद भी आज शर्मा पड़ा उस चाँदनी की नज़ाकत पर 😭❤

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