सृजन - Our Sahityashala

बेटी का बाप

एक बेटी के बाप का डर

उसे रात को सोने नही देता है 

पढ़ाई से लेकर विदाई के ख़र्चे,

और उसके ऊपर दुनिया वालों के चर्चे,

ये चिंता , ये असमंजस,

उसकी रात ख़त्म होने नहीं देता है | 

शरीर ने साथ थोड़ा छोड़ा है,

कमर ने अपना रुख मोड़ा है,

हाथ-पाँव भी अब थकते हैं ,

पर बेटी का सोचकर  

ये फिर दौड़ को निकलते हैं |

अभी तो उसको चलना सिखाना है ,

गिरने पर संभलना सिखाना है ,

संभल कर फिर उड़ना सिखाना है ,

और उसकी उड़ान का फिर जश्न भी तो मनाना है |

ख्वाहिशों को उसकी पंख लगाना है ,

दुनिया की बुरी नज़र से उसे बचाना है ,

जीत पर उसकी तालियाँ बजानी हैं,

और हार पर उसे गले से लगाना है |

हँसना है , रोना है ,

विवाह के सगन का हिसाब करना है,

कंधो का बोझ उसको ही उठाना है, 

हार नहीं मान सकता वो बाप , 

क्योंकि बेटी के लिए अभी बहुत कुछ करना है | 

ये वातें याद दिलाती हैं ,

बेटी से बिछड़ जाने का ग़म साथ लाती हैं ,

ज़हन में सौ बार आकर उसको सताती हैं , 

बेटी का बाप है वो साहब ,

रात में चैन की नींद कहाँ उसे आती है ?

द्वारा-

शिफ़ाली (XII)

सर्वोदय कन्या विद्यालय मोती नगर

________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हे कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

3 thoughts on “बेटी का बाप

  1. लड़की के चेहरे पर ख़ुशी ओर मन में शांति ले आती है उस बाप की निंदिया

  2. Shabdo ke zariye dil ki baat sache and aur pyaare tareeke se baiyan karni aati hai writer ko.
    Ek father ka perspective samjhaya hai

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