Poetry

प्रेम का संसार….

बारहवाँ रस,
सत्रहवाँ शृंगार होना चाहिए,
अब कुछ अलग सा
प्रेम का संसार होना चाहिए

जो सभी ने है सुना,
लिख, कह गए शायर सभी,
उन कल्पनाओं से इतर,
सच-द्वार होना चाहिए,l
अब कुछ अलग सा
प्रेम का संसार होना चाहिए

छरहरा न भी ये तन हो,
रूप में लावण्य कम हो,
सौंदर्य के प्रतिमानों का
उद्धार होना चाहिए,
अब कुछ अलग सा
प्रेम का संसार होना चाहिए

दिल तो धड़के
पर हवा में न उड़े
गोरी का आँचल,
बात भी सब सामने हो,
न यक्ष हो, न कोई बादल,
हामी-मनाही का उचित
समाहार होना चाहिए
अब कुछ अलग सा
प्रेम का संसार होना चाहिए

थामने पर हाथ को,
महसूसने का भाव हो,
अब दिखावे का सदा,
हर प्रेम में अभाव हो,
खिन्न होना, भिन्न होना
हो सहज स्वीकार्य किन्तु,
सम्मान भावना में
बरकरार होना चाहिए
अब कुछ अलग सा
प्रेम का संसार होना चाहिए। 

2 thoughts on “प्रेम का संसार….

  1. अच्छा लिखा है आपने
    अधिकतर लोग केवल वहीं तक सोचते है जहाँ तक पूर्वजों ने छोड़ रखा आगे या अलग तक पहुँचने की कोशिश कम लोग ही करते है , आप उन कम लोगो में मुझे महसूस हुवें ।
    सही कहा आपने
    बारहवां रस
    सोलहवाँ श्रृंगार होना चाहिए
    अब कुछ अलग सा
    प्रेम का संसार होना चाहिए
    👌👌👌👌👌👌

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