प्रेम
हर खाँचे में जो ढ़ल जाए, प्रेम नहीं है,
हालातों से बदल जो जाए, प्रेम नहीं है,
विरह सोच भर लेने से मुरझाने वाला,
ग़र डाल से बिछड़े फूल से निखरा,
प्रेम नहीं है।
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हर खाँचे में जो ढ़ल जाए, प्रेम नहीं है,
हालातों से बदल जो जाए, प्रेम नहीं है,
विरह सोच भर लेने से मुरझाने वाला,
ग़र डाल से बिछड़े फूल से निखरा,
प्रेम नहीं है।
Bahut umda…lajawab…really nice n true.
Thank you! Keep visiting Writeside. 🙂