किसी विचार की सही तार्किकता तब जान पाओगे, उसके बनने की परिस्थितियाँ जब पहचान जाओगे। © Nikki Mahar | WriteSide

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किसी विचार की सही तार्किकता तब जान पाओगे, उसके बनने की परिस्थितियाँ जब पहचान जाओगे। © Nikki Mahar | WriteSide
कहने वालों ने बहुत कुछ कहा, पढ़ने वालों ने तरह तरह के तर्क पाए। महसूसने की उस बात को अनगिनत तरीकों से गद्य में पढ़ा गया। हर बार निराली ही तर्ज़ पर कविताओं में गढ़ा गया। याद है ना? एक कवि ने सबसे बुरा ‘जाने की क्रिया को बताया’ तो दूसरे ने ‘ हमारे सपनों […]
किसी शजर की जड़ का पानी, और आदम की साँस रवानी, ख़ुद पर बीती, तब ये जाना अलग नहीं दोनों के मानी । . जैसे गिरे शजर की शाखें, तेज़ धार तलवारों से, वैसे लफ्ज़ गिरें मौन में रूखे रुसवा व्यवहारों से। . जैसे डाल के पत्ते झरते, बीत चुकी बहारों से, वैसे अक्सर मन […]
वक़्त गुज़रा ज़िंदगी चली बेबसी के आगे उम्मीदें ढली आँसू झर गए, शब्द मर गए रंग भी उड़ा, रौनक गई शाखों ने दिशा चुन ली नई झिंझड गए, सिहर गए फ़ीकी पड़ी हरियाली जब सूखकर, बिखर गए, बढ़ने से पर रुके नहीं टूटे थे पर झुके नहीं, जब परिधियाँ ईंट की, दीवार बन घेरे रहीं […]
शिकायत ये नहीं उसको भ्रमर ने हाथ छोड़ा है, ग़िला ये भी नहीं कि शूल ने डालों को मोड़ा है, शजर हूँ मैं वो जिसका हर सिरा महके है माटी से, भला इस बात पे ग़म क्या कि गुल ने साथ छोड़ा है। -Nikki Mahar | Writeside Place: Munsyari, Uttarakhand Pic courtesy : @traveler_pnkz
भोर भए सूरज सी उगना, हर सिम्त ख़ुदी में जगमग दिखना, आकाश न भी सिमटे मुट्ठी में, बनकर के उजाला रोशन दिखना। किरणों को अपनी सखी बनाना, नूर हर इक कोने तक लाना, फूलों को देकर के उजाले, खुद में उनका खिलना रखना। जब घुले हवा में तेरे उजाले, पंछी भी परवाज़ संभाले, देख के […]
जब भी हमने भरी उड़ानेंपत्थर हमपर भी उछले थे,जितने आए पत्थर ऊपरउतने अपने पंख खुले थे,नज़रे हमने रखीं सदा ही,सीमा पार वितानों के,फिर तो कोई निशां न छूटा,धरती से पड़े निशानों के, जबसे नील गगन में फैलेपरों ने अपने गश्त लगाई,कभी आँधी, कभी तूफ़ां बनकर,अनगिन मुश्किल उनपर आई,कभी घनेरी बदली छाई,और अंधियारा लेकर आई,परों ने […]