अनुवाद (Translated Poem)

मैं फिर भी उड़ूँगी!

तुम कर सकते हो मुझे इतिहास में दर्ज़ अपने कडवे, मनगढ़ंत झूठ के साथ तुम मिला सकते हो मुझे धूल में फिर भी, उसी धूल की तरह, मैं उड़ूँगी। क्या मेरी जीवंतता तुम्हें उदास करती है? तुम क्यों इतनी घोर निराशा से भरे जाते हो? इसलिए कि मैं ऐसे जीती हूँ जैसे हूँ तमाम अभावों […]

अनुवाद (Translated Poem)

क्योंकि मैं मृत्यु के लिए नहीं रुक सकी

क्योंकि मैं मृत्यु के लिए नहीं रुक सकी परन्तु वह, मेरी प्रतीक्षा में रुका उसकी सवारी थे केवल हम और अमरता बड़ी ही सहजता से चले थे हम उसके स्वभाव में कोई हड़बड़ाहट नहीं थी मैंने भी उसकी ख़ातिर तुरन्त ही सब छोड़ दिया अपनी व्यस्तताएँ भी और इत्मिनान भी अपने सफ़र में हम स्कूली […]

Poetry

बिखराव

बीज ने, चीरा है खुद को तब कहीं अंकुर बना है मृदा ने, चीरा है खुद को तब कहीं पौधा जना है। . लौ ने, चीरा है हवा को, तब कहीं उजाला हुआ है उजाले ने, चीरा अंधेरा तब कहीं सवेरा हुआ है । . व्योम ने, चीरा है दामन तब कहीं द्युति चमचमाई द्युति […]

Poetry

विदा

मुझे हमेशा लगता है आँखो में नमी और सुकून की कमी छुपाते हुए जो हाथ मज़बूती से सूटकेस को थाम कर चढ़ते हैं किसी रेलगाड़ी में या उड़ते हैं हवाई जहाज में वो हाथ उस वक़्त अलविदा में हिलते हाथों से कहीं ज़्यादा कमज़ोर होते हैं . . बस उनका काँपना होता है भीतर की […]

Article

आहत ख़त बेनाम पते पर।

ज़रा लंबी विषय वस्तु है इत्मीनान से पढ़ियेगा। मैं उस वर्ग का हिस्सा नहीं हूँ पर मुझे ‘मैं’ रूप में स्थापित करने में इस वर्ग के विभिन्न लोगों ने अनेक रिश्तों के रूप में मेरी मदद की है। बस ये एक उलझन जो मैं महसूस कर पाई हूँ अपने साथी वर्ग की। _______________________________________________________________________________________________________________ माना मेरे […]

शजर शृंखला

शजर-6

राहों पे मिलते शजर ने कहा है, जाना यूँ तेरा, क्या अलविदा है? फिर मेरे लबों की तबस्सुम ने बोला, मौन ने मन की बातों को खोला, तेरी जड़ों से बनकर, डालों पे पली हूँ, बयारों के संग संग पत्तों सी चली हूँ, तूने ही मुझको खिलाया गुलों सा, तेरे नूर से ही बहारे हैं […]

शजर शृंखला

शजर-5

कोई वक़्त तकता, कोई पहर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है है शुकराना उन बेज़ुबाँ पंछियों को, सूखी डालों का भी, रहा ख़्याल जिनको बाक़ि ये ज़माना है मशगूल ख़ुद में, कोई इधर देखता है, कोई उधर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है… तकते हैं उसकी जानिब, कई लोग […]

शजर शृंखला

शजर-4

क्यों शाखें छोडकर, परिंदे सभी घर गए, करके सूनी टहनियाँ, पत्ते भी सारे झर गए, ये बयार, ये बहार, चंद पल को साथ थीं, बस जड़ों के उलझाव थे, जो दुखों को हर गए, पूछा न उस शजर से, बढकर कभी किसी ने, उस डाल के परिंदों के, बोलो कहाँ पर गए, जिसने जड़ें थीं […]

Quotes

क़फ़स

जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना, कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना? © Nikki Mahar | Writeside

error: Content is protected !!