समीक्षा (Book Review)

BESHARM (बेशर्म)

‘Besharam’ is a non-fiction book by Taslima Nasreen that provides a critical analysis of women’s rights, patriarchy, and the feminist movement in India and Bangladesh. The novel “Besharam” is not a direct sequel of the novel “Lajja,” but it can be seen as a continuation or reflection of certain aspects of “Lajja.” The central character […]

Poetry

मैं स्वयं समुद्र हूँ!

सीपियों की गोद में, बूँद सी सदा पली, नीर को निखारकर, एक नदी में हूँ ढ़ली, उफ़ान में हुंकार हूँ, उतार में झंकार सी, सतह पर उतरी जो मैं, कश्ती कई उबार दी, मोतियों को गर्भ के असीम अंत में रखा, तरंग के उछाल ने वितान शीर्ष भी चखा, सजा दिए, तो बस्तियों के छोर […]

Quotes

इल्म

झंझावातों से डाल पर जो टिक न पाए हों, दामन में जिनके लाख काँटों के साए हों, और भाग में लहराते गेसू न आए हों, सफ़हों के आवरण भी जिसने न पाए हों, उस ग़ुल ने आदम को यह हुनर सिखाया है, झरकर भी महकते रहो यह इल्म कराया है। -Nikki Mahar गेसू: बाल / […]

Article

बुनावट

कहानियाँ लिख नहीं पाती इसलिए क़िस्से लिखने की कोशिश करती हूँ। निराशा के अनुभवों से उपजे सवालों के जवाब जब आसपास मिलें तो समझना आसान नहीं होता पर ज़रूरी होता है। अमूमन, उदासी और दर्द से घिरे इंसान से हम यही कहते हैं कि जो भी मुश्किल है उसके हल की ओर ध्यान दो। हो […]

Poetry

पूछ रहे हैं राम

राह न मेरी चिह्नित करते, पर के कटने तक न लड़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे जानकी तक बढ़ते?? नहीं वानर वे आगे बढ़ते, परमारथ हित सेतु न गढ़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे लंका में पग धरते?? बातें नीति की न करते, कर्मों में कुल लक्षण भरते, पूछ रहे हैं […]

अनुवाद (Translated Poem)

मैं फिर भी उड़ूँगी!

तुम कर सकते हो मुझे इतिहास में दर्ज़ अपने कडवे, मनगढ़ंत झूठ के साथ तुम मिला सकते हो मुझे धूल में फिर भी, उसी धूल की तरह, मैं उड़ूँगी। क्या मेरी जीवंतता तुम्हें उदास करती है? तुम क्यों इतनी घोर निराशा से भरे जाते हो? इसलिए कि मैं ऐसे जीती हूँ जैसे हूँ तमाम अभावों […]

Poetry

बिखराव

बीज ने, चीरा है खुद को तब कहीं अंकुर बना है मृदा ने, चीरा है खुद को तब कहीं पौधा जना है। . लौ ने, चीरा है हवा को, तब कहीं उजाला हुआ है उजाले ने, चीरा अंधेरा तब कहीं सवेरा हुआ है । . व्योम ने, चीरा है दामन तब कहीं द्युति चमचमाई द्युति […]

शजर शृंखला

शजर-6

राहों पे मिलते शजर ने कहा है, जाना यूँ तेरा, क्या अलविदा है? फिर मेरे लबों की तबस्सुम ने बोला, मौन ने मन की बातों को खोला, तेरी जड़ों से बनकर, डालों पे पली हूँ, बयारों के संग संग पत्तों सी चली हूँ, तूने ही मुझको खिलाया गुलों सा, तेरे नूर से ही बहारे हैं […]

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