अनुवाद (Translated Poem)

क्योंकि मैं मृत्यु के लिए नहीं रुक सकी

क्योंकि मैं मृत्यु के लिए नहीं रुक सकी परन्तु वह, मेरी प्रतीक्षा में रुका उसकी सवारी थे केवल हम और अमरता बड़ी ही सहजता से चले थे हम उसके स्वभाव में कोई हड़बड़ाहट नहीं थी मैंने भी उसकी ख़ातिर तुरन्त ही सब छोड़ दिया अपनी व्यस्तताएँ भी और इत्मिनान भी अपने सफ़र में हम स्कूली […]

Poetry

बिखराव

बीज ने, चीरा है खुद को तब कहीं अंकुर बना है मृदा ने, चीरा है खुद को तब कहीं पौधा जना है। . लौ ने, चीरा है हवा को, तब कहीं उजाला हुआ है उजाले ने, चीरा अंधेरा तब कहीं सवेरा हुआ है । . व्योम ने, चीरा है दामन तब कहीं द्युति चमचमाई द्युति […]

Poetry

विदा

मुझे हमेशा लगता है आँखो में नमी और सुकून की कमी छुपाते हुए जो हाथ मज़बूती से सूटकेस को थाम कर चढ़ते हैं किसी रेलगाड़ी में या उड़ते हैं हवाई जहाज में वो हाथ उस वक़्त अलविदा में हिलते हाथों से कहीं ज़्यादा कमज़ोर होते हैं . . बस उनका काँपना होता है भीतर की […]

Quotes

क़फ़स

जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना, कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना? © Nikki Mahar | Writeside

शजर शृंखला

शजर-1

शिकायत ये नहीं उसको भ्रमर ने हाथ छोड़ा है, ग़िला ये भी नहीं कि शूल ने डालों को मोड़ा है, शजर हूँ मैं वो जिसका हर सिरा महके है माटी से, भला इस बात पे ग़म क्या कि गुल ने साथ छोड़ा है। -Nikki Mahar | Writeside Place: Munsyari, Uttarakhand Pic courtesy : @traveler_pnkz

Quotes

पीड़ा

पीड़ा की भी अपनी ज़ुबान होती है, आहद पीर नाद से कहती है, अनहद महज़ नीर बन बहती है। – Nikki Mahar I Writeside

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