समीक्षा (Book Review)

IKIGAI (इकिगाई)

ऐसा तो कुछ नहीं जो साधारण परिवार में जन्में बच्चे अपने माता-पिता से या सम्पर्क में आए किसी अपने से न सुन पाया हो। हाँ, लेकिन जैसे पहनावे, भाषा, व्यवहार आदि विषयों में एक फ़ॉर्मल तरीका होता है, इस किताब में उन्हीं सारी बातों, विचारों, आदतों, तरीकों को पर्यवेक्षण के साक्ष्यों के आधार पर भाषा […]

Poetry

मैं स्वयं समुद्र हूँ!

सीपियों की गोद में, बूँद सी सदा पली, नीर को निखारकर, एक नदी में हूँ ढ़ली, उफ़ान में हुंकार हूँ, उतार में झंकार सी, सतह पर उतरी जो मैं, कश्ती कई उबार दी, मोतियों को गर्भ के असीम अंत में रखा, तरंग के उछाल ने वितान शीर्ष भी चखा, सजा दिए, तो बस्तियों के छोर […]

Article

इंतज़ार…

दुनिया में क्रियाओं की भरमार है। इसी ढ़ेर  में एक क्रिया है ‘इंतज़ार’। अक्सर इंतज़ार के साथ ‘मुंतज़िर’ शब्द का साथ ख़ुशी  देता है। अमूमन ऐसा सभी के साथ होता है, मेरे साथ भी होता था। मुझे भी इंतज़ार करना पसंद नहीं था; कारण थे अनुभव; सभी की तरह। ऐसे अनुभव जिनमें इंतज़ार करते-करते आस […]

Poetry

प्रेम का संसार….

बारहवाँ रस, सत्रहवाँ शृंगार होना चाहिए, अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए जो सभी ने है सुना, लिख, कह गए शायर सभी, उन कल्पनाओं से इतर, सच-द्वार होना चाहिए,l अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए छरहरा न भी ये तन हो, रूप में लावण्य कम हो, सौंदर्य के प्रतिमानों […]

Quotes

प्रेम

हर खाँचे में जो ढ़ल जाए, प्रेम नहीं है, हालातों से बदल जो जाए, प्रेम नहीं है, विरह सोच भर लेने से मुरझाने वाला, ग़र डाल से बिछड़े फूल से निखरा, प्रेम नहीं है।   

Article

बुनावट

कहानियाँ लिख नहीं पाती इसलिए क़िस्से लिखने की कोशिश करती हूँ। निराशा के अनुभवों से उपजे सवालों के जवाब जब आसपास मिलें तो समझना आसान नहीं होता पर ज़रूरी होता है। अमूमन, उदासी और दर्द से घिरे इंसान से हम यही कहते हैं कि जो भी मुश्किल है उसके हल की ओर ध्यान दो। हो […]

Poetry

पूछ रहे हैं राम

राह न मेरी चिह्नित करते, पर के कटने तक न लड़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे जानकी तक बढ़ते?? नहीं वानर वे आगे बढ़ते, परमारथ हित सेतु न गढ़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे लंका में पग धरते?? बातें नीति की न करते, कर्मों में कुल लक्षण भरते, पूछ रहे हैं […]

Poetry

जीवनशास्त्र….

व्यंजना के आदि पथ में, लक्षणा से इस जगत में, सर्वदा मैं एक अभिधा, सी सरीखी रह गयी। न मिले उपमान जब तो कल्पना में शब्द गूँथे, भाव सारे कल्पना के, घोल रस में कह गयी। सर्वदा मैं एक अभिधा, सी सरीखी रह गयी। था खोज में प्रसाद शामिल, निज में मधुरिम से गयी मिल, […]

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