शजर शृंखला

शजर-5

कोई वक़्त तकता, कोई पहर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है है शुकराना उन बेज़ुबाँ पंछियों को, सूखी डालों का भी, रहा ख़्याल जिनको बाक़ि ये ज़माना है मशगूल ख़ुद में, कोई इधर देखता है, कोई उधर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है… तकते हैं उसकी जानिब, कई लोग […]

शजर शृंखला

शजर-4

क्यों शाखें छोडकर, परिंदे सभी घर गए, करके सूनी टहनियाँ, पत्ते भी सारे झर गए, ये बयार, ये बहार, चंद पल को साथ थीं, बस जड़ों के उलझाव थे, जो दुखों को हर गए, पूछा न उस शजर से, बढकर कभी किसी ने, उस डाल के परिंदों के, बोलो कहाँ पर गए, जिसने जड़ें थीं […]

Quotes

क़फ़स

जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना, कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना? © Nikki Mahar | Writeside

Article

काँच में आईना

कहने वालों ने बहुत कुछ कहा, पढ़ने वालों ने तरह तरह के तर्क पाए। महसूसने की उस बात को अनगिनत तरीकों से गद्य में पढ़ा गया। हर बार निराली ही तर्ज़ पर कविताओं में गढ़ा गया। याद है ना? एक कवि ने सबसे बुरा ‘जाने की क्रिया को बताया’ तो दूसरे ने ‘ हमारे सपनों […]

Poetry

सार….

समर्पण बना ‘मीरा’, प्रेम को राधा किया, क़द्र ‘रूखमणी’ की; फिर भी कर न सका है ।1। अहसास ‘वृंदावन’ रहे, उम्मीद ‘द्वारिका’ हुई, पीड़ा ‘बरसाने’ की; फिर भी हर न सका है ।2। कोख़ पावन ‘देवकी’ बनी, परवरिश ‘यशोदा’ हुई, वत्सल विरह ‘घाव’; फिर भी भर न सका है ।3। बोध श्रेष्ठ ‘श्लोक’ थे, ज्ञान […]

शजर शृंखला

शजर-3

किसी शजर की जड़ का पानी, और आदम की साँस रवानी, ख़ुद पर बीती, तब ये जाना अलग नहीं दोनों के मानी । . जैसे गिरे शजर की शाखें, तेज़ धार तलवारों से, वैसे लफ्ज़ गिरें मौन में रूखे रुसवा व्यवहारों से। . जैसे डाल के पत्ते झरते, बीत चुकी बहारों से, वैसे अक्सर मन […]

शजर शृंखला

शजर-2

वक़्त गुज़रा ज़िंदगी चली बेबसी के आगे उम्मीदें ढली आँसू झर गए, शब्द मर गए रंग भी उड़ा, रौनक गई शाखों ने दिशा चुन ली नई झिंझड गए, सिहर गए फ़ीकी पड़ी हरियाली जब सूखकर, बिखर गए, बढ़ने से पर रुके नहीं टूटे  थे पर झुके नहीं, जब परिधियाँ ईंट की, दीवार बन घेरे रहीं […]

शजर शृंखला

शजर-1

शिकायत ये नहीं उसको भ्रमर ने हाथ छोड़ा है, ग़िला ये भी नहीं कि शूल ने डालों को मोड़ा है, शजर हूँ मैं वो जिसका हर सिरा महके है माटी से, भला इस बात पे ग़म क्या कि गुल ने साथ छोड़ा है। -Nikki Mahar | Writeside Place: Munsyari, Uttarakhand Pic courtesy : @traveler_pnkz

Quotes

पीड़ा

पीड़ा की भी अपनी ज़ुबान होती है, आहद पीर नाद से कहती है, अनहद महज़ नीर बन बहती है। – Nikki Mahar I Writeside

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