सृजन - Our Sahityashala

मैं वापस लौट के आऊँगा….

झुकाने की लाख कोशिशें की

जिस तिरंगे को,

उसे फिर से लहराउँगा,

अभी के लिए विदा लेता हूँ साथियों

मैं वापस लौट के आऊँगा,

एक ही तो अभिमान है मेरा

न किसी के सामने शीष झुकाऊँगा,

तुम ठहरो मेरे देश को छलने वालो,

मैं वापस लौट के आऊँगा,

बचपन से जवानी तक,

बड़ा हुआ शहीद-ए-आज़म को सुन-सुन कर।

जल्द लौटूँगा यहाँ,

फिर बदला लूँगा चुन-चुन कर।

आँखें नम मत करना और सोचो,

मेरे जाने पर वो पल,

कितना हसीन, यादगार हो जाएगा।

जब तिरंगे में मेरा शव,

स्वयं को लिपटा पायेगा।

फिरसे इस देश का मैं मान बढ़ाऊँगा।

अभी कुछ पल सोना है मुझे,

मैं वापस लौट के आऊँगा।

सलामी देकर अपने तिरंगे को,

सीने से फिर लगाऊँगा,

मायूस न होना तनिक भी

मैं वापस लौट के आऊँगा।

-धर्मेन्द्र कुमार

बी.एड. द्वितीय वर्ष

चौ. शिवनाथ सिंह शांडिल्य पीजी कॉलेज

सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस  कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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