सृजन - Our Sahityashala

पहचान पर हमला…

उस दिन की सुबह भी रोज़ जैसी थी,
वो मुस्कुराती हुई निकली थी घर से,
सपनों का आसमान आँखों में समेटे,
दिल में उम्मीदों की चमक लेकर।

फिर अचानक, वो एक पल,
जब अंधेरे ने उसकी दुनिया को घेर लिया,
कोई शैतान उसकी ओर बढ़ा,
हाथ में थामी थी उसने नफरत की बोतल।

अचानक, एक चीख गूंज उठी,
उसके चेहरे पर जलन का एहसास,
हर सपना पल में राख बन गया,
जैसे ज़िंदगी ने उसके साथ खेल खेला।

आईना भी अब उसकी पहचान से अनजान,
जो चेहरा था कभी उसकी पहचान,
अब जलते हुए ज़ख्मों की तस्वीर बन गया,
उसकी हंसी, उसके ख्वाब, सब जल गए।

लोगों की निगाहों में अब
दया और तिरस्कार ही दिखता है,
वो सुंदरता जो उसकी ताकत थी,
अब उसे दुनिया से छुपने पर मजबूर करती है।

उसके दिल में अब भी गहरी ख़ामोशी है,
एक छुपा हुआ दर्द, एक छुपा हुआ सवाल,
जो कभी पूरी तरह मिटेगा नहीं,
वो आत्मा अब भी उस दिन की चीख़ को सुनती है।

द्वारा-

प्रार्थना (XII)

सर्वोदय कन्या विद्यालय मोती नगर

________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है मेरे विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हीं कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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