सृजन - Our Sahityashala

मैं या हम ?

मर्द हूँ मैं, समाज हूँ मैं 

पन्ने लिख -लिख इतिहास किया ..

औरत हूँ मैं, माँ मैं तेरी, 

मैंने ही तुझको वर्तमान दिया.!!

मर्द हूँ मैं, समाज हूँ मैं..

पन्ने पढ़ इतिहास रचा.. 

मैं अड़ा हूँ, मैं लड़ा हूँ, मैं जीता,  

मैंने इतना बलिदान दिया.. 

हाँ! तू लड़ा था, तू मरा था, 

तू विजयी हुआ, मैंने स्वीकार किया.. 

बैठ चिता पर संग तेरी, जीवन अपना हार दिया.!! 

मर्द हूँ मैं, समाज हूँ मैं

मैंने क्या -क्या आविष्कार किया

गलियाँ, दुनिया घर -दफ़्तर 

बदला नक्शा, मैंने ये सब काम किया.. 

सुन चूल्हा -चौका घर बदला

मैंने ये सब बिन पगार किया..!

अबला हैं तू बोझ हूँ, मैंने तुझको ढोया हैं.. 

हाँ अबला हूँ , मैं बोझ हूँ, 

तूने ही ये नाम दिया.. 

 सुन चन्दन सी शीतल मैं, हर अग्नि शब्द स्वीकार किया..

औरत हूँ मैं, माँ हूँ तेरी, 

जा मैंने तुझको माफ़ किया..!! 

द्वारा-

नंदिनी रानी (XII)

सर्वोदय कन्या विद्यालय मोती नगर

________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है मेरे विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हीं कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!