शजर शृंखला

शजर-3

किसी शजर की जड़ का पानी, और आदम की साँस रवानी, ख़ुद पर बीती, तब ये जाना अलग नहीं दोनों के मानी । . जैसे गिरे शजर की शाखें, तेज़ धार तलवारों से, वैसे लफ्ज़ गिरें मौन में रूखे रुसवा व्यवहारों से। . जैसे डाल के पत्ते झरते, बीत चुकी बहारों से, वैसे अक्सर मन […]

शजर शृंखला

शजर-2

वक़्त गुज़रा ज़िंदगी चली बेबसी के आगे उम्मीदें ढली आँसू झर गए, शब्द मर गए रंग भी उड़ा, रौनक गई शाखों ने दिशा चुन ली नई झिंझड गए, सिहर गए फ़ीकी पड़ी हरियाली जब सूखकर, बिखर गए, बढ़ने से पर रुके नहीं टूटे  थे पर झुके नहीं, जब परिधियाँ ईंट की, दीवार बन घेरे रहीं […]

शजर शृंखला

शजर-1

शिकायत ये नहीं उसको भ्रमर ने हाथ छोड़ा है, ग़िला ये भी नहीं कि शूल ने डालों को मोड़ा है, शजर हूँ मैं वो जिसका हर सिरा महके है माटी से, भला इस बात पे ग़म क्या कि गुल ने साथ छोड़ा है। -Nikki Mahar | Writeside Place: Munsyari, Uttarakhand Pic courtesy : @traveler_pnkz

Poetry

अंतिम छोर…..

इस धरा के अंतिम छोर तलक, मिलता है जहाँ ये श्याम फ़लक, निर्जन है, कोई न आता है, पसरा केवल सन्नाटा है, बिन शब्द और आवाज़ वहाँ, कानों में कुछ तो कहे हवा, माथे को चूम निकलती है, अंतस में प्रतिध्वनि पलती है, फिर लहर बने वो दौड़ पड़ी, होंठो पर फिर एक हँसी खिली, […]

समीक्षा (Book Review)

BECOMING (बिकमिंग)

जब मैंने इस किताब को पढ़ना शुरू किया तब मेरे ज़हन में यह तय था कि मैं दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति की भूतपूर्व प्रथम महिला के लिखे संस्मरण को पढ़ने जा रही हूँ। कुछ एक पन्नों के पढ़ लिए जाने के बाद ही मुझे ये एक ऐसी सामान्य लड़की के बयान लगने लगे जो […]

Quotes

पीड़ा

पीड़ा की भी अपनी ज़ुबान होती है, आहद पीर नाद से कहती है, अनहद महज़ नीर बन बहती है। – Nikki Mahar I Writeside

Quotes

फ़र्क़

अनुभूति और सहानुभूति के फ़र्क़ से बेख़बर समाज ही कोमल को कमज़ोर मान लेने की भूल करता है। © Nikki Mahar | Writeside

Poetry

भोर और तुम

भोर भए सूरज सी उगना, हर सिम्त ख़ुदी में जगमग दिखना, आकाश न भी सिमटे मुट्ठी में, बनकर के उजाला रोशन दिखना। किरणों को अपनी सखी बनाना, नूर हर इक कोने तक लाना, फूलों को देकर के उजाले, खुद में उनका खिलना रखना। जब घुले हवा में तेरे उजाले, पंछी भी परवाज़ संभाले, देख के […]

Poetry

रंग…..

रंगों से परहेज़ नहीं है, ग़लत रंग के रंगने से है….. श्याम सलोने भाते सबको, काले बाल सुहाते सबको, घिरकर काले बादल ने ही, धरती का सूखा है मिटाया, काजल ने नैनों में पड़कर है उनका सौंदर्य बढ़ाया रात अंधेरी जब आयी है, एक सुबह भी संग लायी है, पर यह काला रंग उतर नज़र […]

Poetry

इबादत

जब भी हमने भरी उड़ानेंपत्थर हमपर भी उछले थे,जितने आए पत्थर ऊपरउतने अपने पंख खुले थे,नज़रे हमने रखीं सदा ही,सीमा पार वितानों के,फिर तो कोई निशां न छूटा,धरती से पड़े निशानों के, जबसे नील गगन में फैलेपरों ने अपने गश्त लगाई,कभी आँधी, कभी तूफ़ां बनकर,अनगिन मुश्किल उनपर आई,कभी घनेरी बदली छाई,और अंधियारा लेकर आई,परों ने […]

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