किसी शजर की जड़ का पानी, और आदम की साँस रवानी, ख़ुद पर बीती, तब ये जाना अलग नहीं दोनों के मानी । . जैसे गिरे शजर की शाखें, तेज़ धार तलवारों से, वैसे लफ्ज़ गिरें मौन में रूखे रुसवा व्यवहारों से। . जैसे डाल के पत्ते झरते, बीत चुकी बहारों से, वैसे अक्सर मन […]
