सृजन - Our Sahityashala

पहचान पर हमला…

उस दिन की सुबह भी रोज़ जैसी थी,वो मुस्कुराती हुई निकली थी घर से,सपनों का आसमान आँखों में समेटे,दिल में उम्मीदों की चमक लेकर। फिर अचानक, वो एक पल,जब अंधेरे ने उसकी दुनिया को घेर लिया,कोई शैतान उसकी ओर बढ़ा,हाथ में थामी थी उसने नफरत की बोतल। अचानक, एक चीख गूंज उठी,उसके चेहरे पर जलन […]

सृजन - Our Sahityashala

कल रात का चाँद…

रात को एक तारा चाँद के सबसे क़रीब था,कल रात का चाँद भी कितना ख़ुशनसीब था।उस चन्द्रमा की चाँदनी का कोई मोल नहीं,मगर कल तो सितारा भी जगमगा रहा था। दोनों ने एक-दूसरे को बहुत देर तक देखा,जी भर के देखा, आँख भर के देखा।उन्हें शरमाते हुए कल मैंने देखा,कुछ बातें भी हुई उनकी,बस हाथ […]

सृजन - Our Sahityashala

बिटिया..

नाज़ों से पाला जिस बेटी को, उसी को हमसे छीन लिया, मेहनत से था जिसे पढ़ाया, उसी को हमसे दूर किया। पापा, मैं घर आऊँगी जल्दी, उसने कहा था प्यार से, पर वो लौटकर कभी न आई, घर में सन्नाटा बस गया था तब से। जिनके जीने की वजह वही बेटी थी, तुमने उनसे जीने […]

Poetry

पढ़ो

जब रिक्त हो अंतस तक कोई जन,और भीतर तक भरना चाहे मन,तब केवल एक तरीका हो,पढ़ डालो लिखा सरीखा जो,नज़रों के पोरों से छू लो,पन्नों पर लिखे कथानक को,फिर अक्षर दर अक्षर खोलो,हर कथा के किरदारों का ज़हन……. तुम पढ़ो कि तुम भी जान सको,किस अनहोनी पर शर्मिंदा हैं,इसलिए पढ़ो कि जान सको,किनके बलिदान से […]

समीक्षा (Book Review)

BESHARM (बेशर्म)

‘Besharam’ is a non-fiction book by Taslima Nasreen that provides a critical analysis of women’s rights, patriarchy, and the feminist movement in India and Bangladesh. The novel “Besharam” is not a direct sequel of the novel “Lajja,” but it can be seen as a continuation or reflection of certain aspects of “Lajja.” The central character […]

समीक्षा (Book Review)

IKIGAI (इकिगाई)

ऐसा तो कुछ नहीं जो साधारण परिवार में जन्में बच्चे अपने माता-पिता से या सम्पर्क में आए किसी अपने से न सुन पाया हो। हाँ, लेकिन जैसे पहनावे, भाषा, व्यवहार आदि विषयों में एक फ़ॉर्मल तरीका होता है, इस किताब में उन्हीं सारी बातों, विचारों, आदतों, तरीकों को पर्यवेक्षण के साक्ष्यों के आधार पर भाषा […]

Poetry

मैं स्वयं समुद्र हूँ!

सीपियों की गोद में, बूँद सी सदा पली, नीर को निखारकर, एक नदी में हूँ ढ़ली, उफ़ान में हुंकार हूँ, उतार में झंकार सी, सतह पर उतरी जो मैं, कश्ती कई उबार दी, मोतियों को गर्भ के असीम अंत में रखा, तरंग के उछाल ने वितान शीर्ष भी चखा, सजा दिए, तो बस्तियों के छोर […]

Quotes

इल्म

झंझावातों से डाल पर जो टिक न पाए हों, दामन में जिनके लाख काँटों के साए हों, और भाग में लहराते गेसू न आए हों, सफ़हों के आवरण भी जिसने न पाए हों, उस ग़ुल ने आदम को यह हुनर सिखाया है, झरकर भी महकते रहो यह इल्म कराया है। -Nikki Mahar गेसू: बाल / […]

Article

इंतज़ार…

दुनिया में क्रियाओं की भरमार है। इसी ढ़ेर  में एक क्रिया है ‘इंतज़ार’। अक्सर इंतज़ार के साथ ‘मुंतज़िर’ शब्द का साथ ख़ुशी  देता है। अमूमन ऐसा सभी के साथ होता है, मेरे साथ भी होता था। मुझे भी इंतज़ार करना पसंद नहीं था; कारण थे अनुभव; सभी की तरह। ऐसे अनुभव जिनमें इंतज़ार करते-करते आस […]

Poetry

प्रेम का संसार….

बारहवाँ रस, सत्रहवाँ शृंगार होना चाहिए, अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए जो सभी ने है सुना, लिख, कह गए शायर सभी, उन कल्पनाओं से इतर, सच-द्वार होना चाहिए,l अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए छरहरा न भी ये तन हो, रूप में लावण्य कम हो, सौंदर्य के प्रतिमानों […]

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