शुभाशीष! ( सत्र 2022-23)
मनुष्यों के भीतर असीम स्थान होता है। वह लगभग सबकुछ अपने भीतर ताउम्र रख सकते हैं। जिस पल माँ की कोख़ से निकल किसी अस्पताल के बिस्तर पर आँखें खोलते हैं, तभी से भीतर उन स्थानों को समेटने की कला उसे आ जाती है।अस्पताल के माहौल का अजनबीपन, माँ की गोद की ममता, घर में घुटनों के बल चलने की याद, गली-मोहल्ले का अल्हड़पन, स्कूल के सबक,कॉलेज की मस्ती, नौकरी की सीख, सफलता के प्रतिमान…ये सब कुछ अपने भीतर भरता ही जाता है। कुछ पल भी वह जिन स्थानों पर रहता है, ताउम्र वे स्थान फिर उनमें रहते हैं। मेरे भीतर भी हमेशा के लिए कुछ जगहों की छाप रहेगी। मेरा जन्म और पालन-पोषण दिल्ली में हुआ। कभी कभार घूमने के लिए ही दिल्ली से बाहर जाना हुआ, वह भी कुछ दिनों के लिए होता था। नौकरी के चलते 2019 में मेरा कोलकाता जाना हुआ। वहाँ के अनुभव कभी और फुरसत से लिखूँगी। बहुत कुछ है जो लिखा जाना चाहिए।

फिलहाल, मैं लिखना चाहती हूँ मेरी नौकरी, मेरे काम और मेरे व्यावसायिक आधार की धुरी मेरे बच्चों के बारे में। इत्तेफ़ाक़ होता है या कुछ और मगर मेरी नौकरी का बदलना हर दफ़ा तभी होता है जब मैं कक्षा 10 की क्लास टीचर होती हूँ। पिछली बार जब कोलकाता गयी तो दिल्ली में अपने बोर्ड्स के बच्चे छोड़ के गयी और अब जब लौटी तो कोलकाता में बोर्ड्स के बच्चों को छोड के आना पड़ा। बाक़ी सब हो भी जाता है, मगर बतौर क्लास टीचर अपनी क्लास बीच में छोड़ के आना आसान तो नहीं होता। कुछ बंदिशें जीवन में होती हैं जिनका निभाया जाना तय होता है। कल मेरे बच्चे अपनी बोर्ड की परीक्षा देने जाएंगे। मुझे उम्मीद और भरोसा दोनों है कि पूरी मेहनत से वे तैयारी कर रहे होंगे। मैं वहाँ होती तो भी दुआएं और आशीष इतने ही मन से देती।

यहाँ भी दसवीं के जो बच्चे कुछ ही दिन सही, मगर पढ़े हैं, उनको भी इतनी ही शुभकामनाएं।
अपनी कोशिशों में कमी न रखना और आपको मेहनत का फल ज़रूर मिलेगा। सिर्फ़ अंक आपको परिभाषित नहीं करते हैं परंतु इसकी आवश्यकता को नज़रअंदाज सिर्फ़ दिखावेबाज़ी के लिए कर देना भी ठीक नहीं है। बेहतर इंसान बनिए। ईश्वर आपको इतनी समझ दे कि आप ऐसी तरक्की करें जहाँ शीश आकाश में हो पर कदम ज़मी पर बने रहें। सफलता का हाथ थाम कर अधिक मनुजता अपनाएँ आप।आपके मन की मासूमियत बरक़रार रहे।
कल की परीक्षा के लिए शुभकामना!
– आपकी टीचर