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क़फ़स

जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना, कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना? © Nikki Mahar | Writeside

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पीड़ा

पीड़ा की भी अपनी ज़ुबान होती है, आहद पीर नाद से कहती है, अनहद महज़ नीर बन बहती है। – Nikki Mahar I Writeside

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फ़र्क़

अनुभूति और सहानुभूति के फ़र्क़ से बेख़बर समाज ही कोमल को कमज़ोर मान लेने की भूल करता है। © Nikki Mahar | Writeside

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