Poetry

पढ़ो

जब रिक्त हो अंतस तक कोई जन,और भीतर तक भरना चाहे मन,तब केवल एक तरीका हो,पढ़ डालो लिखा सरीखा जो,नज़रों के पोरों से छू लो,पन्नों पर लिखे कथानक को,फिर अक्षर दर अक्षर खोलो,हर कथा के किरदारों का ज़हन……. तुम पढ़ो कि तुम भी जान सको,किस अनहोनी पर शर्मिंदा हैं,इसलिए पढ़ो कि जान सको,किनके बलिदान से […]

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मैं स्वयं समुद्र हूँ!

सीपियों की गोद में, बूँद सी सदा पली, नीर को निखारकर, एक नदी में हूँ ढ़ली, उफ़ान में हुंकार हूँ, उतार में झंकार सी, सतह पर उतरी जो मैं, कश्ती कई उबार दी, मोतियों को गर्भ के असीम अंत में रखा, तरंग के उछाल ने वितान शीर्ष भी चखा, सजा दिए, तो बस्तियों के छोर […]

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प्रेम का संसार….

बारहवाँ रस, सत्रहवाँ शृंगार होना चाहिए, अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए जो सभी ने है सुना, लिख, कह गए शायर सभी, उन कल्पनाओं से इतर, सच-द्वार होना चाहिए,l अब कुछ अलग सा प्रेम का संसार होना चाहिए छरहरा न भी ये तन हो, रूप में लावण्य कम हो, सौंदर्य के प्रतिमानों […]

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पूछ रहे हैं राम

राह न मेरी चिह्नित करते, पर के कटने तक न लड़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे जानकी तक बढ़ते?? नहीं वानर वे आगे बढ़ते, परमारथ हित सेतु न गढ़ते, पूछ रहे हैं राम लला हम कैसे लंका में पग धरते?? बातें नीति की न करते, कर्मों में कुल लक्षण भरते, पूछ रहे हैं […]

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चाराग़र

साथी सुनो, इंसां हूँ मैं, तुमसा ही हूँ, जुदा नहीं मुझको न तुम लक़ाब दो, मैं कोई ख़ुदा नहीं, जो भी कर रहा हूँ मैं, मेरा महज़ वो कर्म है, दवा में घोल कर दुआ, जीवन बाँटना ही धर्म है, ये है हुनर को आस से बाँधने की बंदगी, थाम करके नब्ज़ को टटोलता हूँ […]

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जीवनशास्त्र….

व्यंजना के आदि पथ में, लक्षणा से इस जगत में, सर्वदा मैं एक अभिधा, सी सरीखी रह गयी। न मिले उपमान जब तो कल्पना में शब्द गूँथे, भाव सारे कल्पना के, घोल रस में कह गयी। सर्वदा मैं एक अभिधा, सी सरीखी रह गयी। था खोज में प्रसाद शामिल, निज में मधुरिम से गयी मिल, […]

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बिखराव

बीज ने, चीरा है खुद को तब कहीं अंकुर बना है मृदा ने, चीरा है खुद को तब कहीं पौधा जना है। . लौ ने, चीरा है हवा को, तब कहीं उजाला हुआ है उजाले ने, चीरा अंधेरा तब कहीं सवेरा हुआ है । . व्योम ने, चीरा है दामन तब कहीं द्युति चमचमाई द्युति […]

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विदा

मुझे हमेशा लगता है आँखो में नमी और सुकून की कमी छुपाते हुए जो हाथ मज़बूती से सूटकेस को थाम कर चढ़ते हैं किसी रेलगाड़ी में या उड़ते हैं हवाई जहाज में वो हाथ उस वक़्त अलविदा में हिलते हाथों से कहीं ज़्यादा कमज़ोर होते हैं . . बस उनका काँपना होता है भीतर की […]

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सार….

समर्पण बना ‘मीरा’, प्रेम को राधा किया, क़द्र ‘रूखमणी’ की; फिर भी कर न सका है ।1। अहसास ‘वृंदावन’ रहे, उम्मीद ‘द्वारिका’ हुई, पीड़ा ‘बरसाने’ की; फिर भी हर न सका है ।2। कोख़ पावन ‘देवकी’ बनी, परवरिश ‘यशोदा’ हुई, वत्सल विरह ‘घाव’; फिर भी भर न सका है ।3। बोध श्रेष्ठ ‘श्लोक’ थे, ज्ञान […]

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अंतिम छोर…..

इस धरा के अंतिम छोर तलक, मिलता है जहाँ ये श्याम फ़लक, निर्जन है, कोई न आता है, पसरा केवल सन्नाटा है, बिन शब्द और आवाज़ वहाँ, कानों में कुछ तो कहे हवा, माथे को चूम निकलती है, अंतस में प्रतिध्वनि पलती है, फिर लहर बने वो दौड़ पड़ी, होंठो पर फिर एक हँसी खिली, […]

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