शजर शृंखला

शजर-6

राहों पे मिलते शजर ने कहा है, जाना यूँ तेरा, क्या अलविदा है? फिर मेरे लबों की तबस्सुम ने बोला, मौन ने मन की बातों को खोला, तेरी जड़ों से बनकर, डालों पे पली हूँ, बयारों के संग संग पत्तों सी चली हूँ, तूने ही मुझको खिलाया गुलों सा, तेरे नूर से ही बहारे हैं […]

शजर शृंखला

शजर-5

कोई वक़्त तकता, कोई पहर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है है शुकराना उन बेज़ुबाँ पंछियों को, सूखी डालों का भी, रहा ख़्याल जिनको बाक़ि ये ज़माना है मशगूल ख़ुद में, कोई इधर देखता है, कोई उधर देखता है, मेरा दिल वो सूखा शजर देखता है… तकते हैं उसकी जानिब, कई लोग […]

शजर शृंखला

शजर-4

क्यों शाखें छोडकर, परिंदे सभी घर गए, करके सूनी टहनियाँ, पत्ते भी सारे झर गए, ये बयार, ये बहार, चंद पल को साथ थीं, बस जड़ों के उलझाव थे, जो दुखों को हर गए, पूछा न उस शजर से, बढकर कभी किसी ने, उस डाल के परिंदों के, बोलो कहाँ पर गए, जिसने जड़ें थीं […]

शजर शृंखला

शजर-3

किसी शजर की जड़ का पानी, और आदम की साँस रवानी, ख़ुद पर बीती, तब ये जाना अलग नहीं दोनों के मानी । . जैसे गिरे शजर की शाखें, तेज़ धार तलवारों से, वैसे लफ्ज़ गिरें मौन में रूखे रुसवा व्यवहारों से। . जैसे डाल के पत्ते झरते, बीत चुकी बहारों से, वैसे अक्सर मन […]

शजर शृंखला

शजर-2

वक़्त गुज़रा ज़िंदगी चली बेबसी के आगे उम्मीदें ढली आँसू झर गए, शब्द मर गए रंग भी उड़ा, रौनक गई शाखों ने दिशा चुन ली नई झिंझड गए, सिहर गए फ़ीकी पड़ी हरियाली जब सूखकर, बिखर गए, बढ़ने से पर रुके नहीं टूटे  थे पर झुके नहीं, जब परिधियाँ ईंट की, दीवार बन घेरे रहीं […]

शजर शृंखला

शजर-1

शिकायत ये नहीं उसको भ्रमर ने हाथ छोड़ा है, ग़िला ये भी नहीं कि शूल ने डालों को मोड़ा है, शजर हूँ मैं वो जिसका हर सिरा महके है माटी से, भला इस बात पे ग़म क्या कि गुल ने साथ छोड़ा है। -Nikki Mahar | Writeside Place: Munsyari, Uttarakhand Pic courtesy : @traveler_pnkz

error: Content is protected !!