Poetry

भोर और तुम

भोर भए सूरज सी उगना,
हर सिम्त ख़ुदी में जगमग दिखना,
आकाश न भी सिमटे मुट्ठी में,
बनकर के उजाला रोशन दिखना।

किरणों को अपनी सखी बनाना,
नूर हर इक कोने तक लाना,
फूलों को देकर के उजाले,
खुद में उनका खिलना रखना।

जब घुले हवा में तेरे उजाले,
पंछी भी परवाज़ संभाले,
देख के फैले पर विहंग के,
तुम भी नई उड़ानें भरना।

परवत पर जो गिरे लालिमा,
निशा की सारी हरे कालिमा,
झरने की बूँदें चमकाकर
निज में उसकी गति को भरना।

जब मैदान उतकर आएँ
तेरी धूप के रोशन साए,
जीवन घास के तिनकों में भर
तुम भी उनके साथ सँवरना ।

धूलि कणों में रचबस जाए,
तेरे तेज का हर एक क़तरा,
उर्वर-उर्वर बना के माटी,
सौंधी सी तुम साथ महकना।

फिर जब सांझ के साए आएँ,
बीत चला है वक़्त बताएँ,
कल फिर उगने का वादा कर
शांत-शांत होकर तुम ढ़लना।

भोर भए सूरज सी उगना,
हर सिम्त ख़ुदी में जगमग दिखना,
आकाश न भी सिमटे मुट्ठी में,
बनकर के उजाला रोशन दिखना।

© Nikki Mahar I Writeside

 

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