रंग…..
रंगों से परहेज़ नहीं है,
ग़लत रंग के रंगने से है…..
श्याम सलोने भाते सबको,
काले बाल सुहाते सबको,
घिरकर काले बादल ने ही,
धरती का सूखा है मिटाया,
काजल ने नैनों में पड़कर
है उनका सौंदर्य बढ़ाया
रात अंधेरी जब आयी है,
एक सुबह भी संग लायी है,
पर यह काला रंग उतर नज़र से
जब कोई नज़रिया रंग देता है,
तब इसकी सुंदरता को
घृणित-घृणित सा कर देता है
नीयत काली रंग जाने ने,
कितनों को हैवान बनाया,
तितली जैसे कितने मन को,
पलभर में बेरंग बनाया।
नहीं एक भी शख्स जहाँ में
जिसे नहीं भाए मुस्काना,
हँसी, ठिठोली हर इक उम्र में,
सबके संग त्योहार मनाना,
अब जब कोई कहे इस दफ़ा
‘नहीं, पंसद ये रंगना-रंगाना’
बिना कहे तुम समझ ये जाना,
कि उसे गुरेज़ नहीं रंगों से,
ग़लत ढंग के रंगने से है
रंगों से परहेज़ नहीं है,
ग़लत रंग के रंगने से है।
© Nikki Mahar I Writeside