सृजन - Our Sahityashala

असहाय चीख़ें…

सिसकियाँ रात की ख़ामोशियों में दब जाती हैं,
इज़्ज़त की धज्जियाँ जब खुलेआम उड़ाई जाती हैं।
सड़कें सुनसान, पर दिलों में तूफ़ान है,
हर कदम पर नारी का खोया हुआ सम्मान है।

आँखों में डर और होठों पर मौन है,
हर बेटी के दिल में अब यही सवाल है:
क्यों मेरे सपनों को कुचला गया?
क्यों मेरे अस्तित्व को यूँ रौंदा गया?

वो चौराहे, वो गलियाँ अब भयानक हैं,
जहाँ हर कोने में नफ़रत की ज़ंजीरें हैं।
चीखना चाहती है, पर आवाज़ घुट जाती है,
इंसाफ़ की राह में उसकी उम्मीदें टूट जाती हैं।

हर आँख में आँसू, हर दिल में दर्द है,
कब थमेगा ये तूफ़ान, कब मिलेगा हमें हक़?
सोचो, क्या गुजरती है उस माँ पर,
जिसकी बेटी की इज़्ज़त यूं बर्बाद हो गई?

कानून के पन्नों में तो बहुत कुछ लिखा है,
पर सच्चाई की राह में सब कुछ बिखरा है।
वो चुप है, पर उसकी चुप्पी में आग है,
हर आह उसकी अब न्याय की मांग है।

उठो, जागो, इस चुप्पी को तोड़ो,
नारी को अब तुम कमजोर न समझो।
इज़्ज़त उसकी है अनमोल, उसकी क़ीमत जानो,
इंसान हो, तो इंसानियत दिखाओ।

द्वारा-

तन्मय शर्मा (XI)

गुरुनानक पब्लिक स्कूल

________________________________________________________________________________________________________________सृजन- Our Sahityashala: एक प्रयास है विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के प्रति रुझान बढ़ाने व सृजनात्मक लेखन की ओर उन्मुख करने का । रचनात्मक लेखन इन कोरे मनों को न सिर्फ़ अपने आस-पास के विषयों के प्रति सजग रखेगा वरन विभिन्न विषयों पर एक तर्कशील मत विकसित करने में सहायक होगा। भाषाई दक्षता के साथ-साथ, ‘हिंदी’ को मात्र विषय से ऊपर उठ एक समृद्ध भाषा की तरह देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा।

मुझे विश्वास है कि विद्यार्थी स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। इस नन्हे कलमकार का दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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