Poetry

पूछ रहे हैं राम

राह न मेरी चिह्नित करते,
पर के कटने तक न लड़ते,
पूछ रहे हैं राम लला
हम कैसे जानकी तक बढ़ते??
नहीं वानर वे आगे बढ़ते,
परमारथ हित सेतु न गढ़ते,
पूछ रहे हैं राम लला
हम कैसे लंका में पग धरते??
बातें नीति की न करते,
कर्मों में कुल लक्षण भरते,
पूछ रहे हैं राम लला,
हम कैसे अनीति से लड़ते??
जो वे लंका में न जाते,
सीता का पता भी न लाते,
पूछ रहे हैं राम लला
हम भार्या कैसे वापस पाते ?
लगा समर में प्राण की बाज़ी,
सब राह सत्य की न गहते,
पूछ रहे हैं राम लला,
हम कैसे सत्य जिता पाते???
देख तात के वक्ष पे तीर,
हुआ तो होगा मन अधीर,
पर धर्माधर्म में सद् चुनकर,
वो अडिग कदम जो न धरते,
पूछ रहे हैं राम लला,
हम कैसे दानव दर्प मिटा पाते??
द्वंद छिड़ा औ समर शेष था,
शत्रु सम्मुख मायावी था,
बूटी की ख़ातिर मित्र मेरे
यदि पर्वत संग में न करते,
पूछ रहे हैं राम लला,
हम कैसे भ्राता जीवित करते??
एकजुट होकर प्राणी विशेष,
देता न श्रम जो बचा शेष,
शौर्य, समर्पण व आशीष
सद्हित मानवजन न करते
पूछ रहे हैं राम लला,
हम कैसे दशमी विजय करते??
-निक्की महर
विजयदशमी (15/10/2021) पर लिखी गयी कविता ।
तस्वीर साभार: @nikhilmishra_creations

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!