शजर शृंखला

शजर-4

क्यों शाखें छोडकर, परिंदे सभी घर गए,
करके सूनी टहनियाँ, पत्ते भी सारे झर गए,

ये बयार, ये बहार, चंद पल को साथ थीं,
बस जड़ों के उलझाव थे, जो दुखों को हर गए,

पूछा न उस शजर से, बढकर कभी किसी ने,
उस डाल के परिंदों के, बोलो कहाँ पर गए,

जिसने जड़ें थीं रोपी, वो हाथ तो न लौटे कभी,
कुछ भटके राहगीर थे, जो चंद पल ठहर गए,

अरसों तक जिस गाँव का, झूलों पे रहा बचपन,
उस गाँव के सब रास्ते, जाने क्यों शहर गए,

बात ग़म निजात की, मन भला कैसे करे,
ग़म क्या है और क्यों है, इसी सोच में पहर गए, .

लब खिले न ग़र खुशी में, हो क्यों मलाल दिल को
जब अश्क छुपाने को हम, हर दर-ए-दहर गए।
© Nikki Mahar । Writeside

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