शजर शृंखला

शजर-6

राहों पे मिलते शजर ने कहा है,
जाना यूँ तेरा, क्या अलविदा है?
फिर मेरे लबों की तबस्सुम ने बोला,
मौन ने मन की बातों को खोला,
तेरी जड़ों से बनकर, डालों पे पली हूँ,
बयारों के संग संग पत्तों सी चली हूँ,
तूने ही मुझको खिलाया गुलों सा,
तेरे नूर से ही बहारे हैं आईं,
साये से तेरे भले दूर हूँ मैं,
मगर तेरी ख़ुशबू संग में हूँ लाई।
उम्र ने शाखों के झूलों से विदा दी है,
तेरे संग से मगर ये अलविदा नहीं है।
© Nikki Mahar | Writeside
Picture by : Aman Singh Kushwaha

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