पढ़ो
जब रिक्त हो अंतस तक कोई जन,
और भीतर तक भरना चाहे मन,
तब केवल एक तरीका हो,
पढ़ डालो लिखा सरीखा जो,
नज़रों के पोरों से छू लो,
पन्नों पर लिखे कथानक को,
फिर अक्षर दर अक्षर खोलो,
हर कथा के किरदारों का ज़हन…….
तुम पढ़ो कि तुम भी जान सको,
किस अनहोनी पर शर्मिंदा हैं,
इसलिए पढ़ो कि जान सको,
किनके बलिदान से ज़िंदा हैं,
तुम पढ़ो बेहिचक क्योंकि,
पढ़ना कभी व्यर्थ न जाएगा,
ये कभी शब्द; कभी भाषा बन,
किस्सों के अर्थ बताएगा
बना तर्ज़ ये कभी तथ्य और कभी तर्क समझाएगा,
वर्णों का यही ताना बाना भाषा समृद्ध बनाएगा,
तो पढ़ो!
तो पढ़ो कि तुम भी जान सको,
और सही ग़लत पहचान सको,
तुम गुज़रों वर्णों की गलियों से,
शब्दों को समेटो, वाक्य करो,
थोड़ा गहन करो अध्ययन,
यूँ खुद में भाषा आबाद करो
कि फिर तुम भाषा की धरती पर,
रख सको तर्क, संवाद करो,
तो पढ़ो कि ये सब कर पाओ,
ख़ुद में भाषा को भर पाओ,
नज़रों के आगे से गुज़रा,
हर वर्ण विचार जगाता है,
इतिहास गवाह है मनुज धरा पर,
शांति-क्रांति तर्क ही लाता है,
तो पढ़ो कि अपनी नज़रों में,
ख़ुद के विचार न झुक पाएँ,
पढ़ो कि अंतस के विचार,
भीतर ही न रुक जाएँ…
तुम पढ़ो….
-Writeside I Nikki Mahar